Bhagwat Gita fourth shlok
भगवद गीता के चौथे श्लोक में भगवान कृष्ण ज्ञान और कर्म के अद्भुत संबंध को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं, " जन्म कर्म च मे दिव्यम्" यानी मेरा जन्म और कर्म दिव्य हैं। यह हमें सिखाता है कि हमारे कार्यों का उद्देश्य केवल भौतिक लाभ नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति होना चाहिए। जब हम अपने कर्मों को ज्ञान के साथ जोड़ते हैं, तब हम सच्चे अर्थ में जीवन का अनुभव करते हैं। यह श्लोक हमें प्रेरित करता है कि हम अपने कर्तव्यों को निभाते हुए भी आत्मज्ञान की ओर बढ़ें। कर्म करते रहो, लेकिन फल की चिंता मत करो। यही है जीवन का असली सार।



