Bhagavad Gita Third Shlok

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। 

इस श्लोक में भगवान कृष्ण हमें कर्म के महत्व को समझाते हैं। यह स्पष्ट करता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। जब हम अपने कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम अपने प्रयासों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते हैं। 


कर्म का अर्थ केवल कार्य करना नहीं है, बल्कि अपने कार्यों को निष्काम भाव से करना है। यह हमें सिखाता है कि सफलता और असफलता दोनों ही हमारे हाथ में नहीं हैं, लेकिन हमारे प्रयास हमेशा हमारे नियंत्रण में होते हैं। जब हम फल की चिंता छोड़ देते हैं, तो हम अपने कार्यों में पूर्णता और संतोष पा सकते हैं। 


इस श्लोक का संदेश है कि जीवन में निरंतरता और समर्पण से ही हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, अपने कर्मों पर ध्यान दें और फल की चिंता छोड़ दें। यही सच्चा ज्ञान है !!





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