Bhagavad Gita second Shlok

 


दूसरा श्लोक भगवद गीता का एक गहरा संदेश देता है। इसमें अर्जुन की दुविधा को दर्शाया गया है, जब वह युद्धभूमि पर अपने प्रियजनों के खिलाफ खड़ा होता है। 

आत्मा अमर है। यह न जन्मती है, न मरती है। जब हम मृत्यु के बारे में सोचते हैं, तो हमें समझना चाहिए कि यह केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। आत्मा का स्वरूप शाश्वत और अटल है। 


इस श्लोक में कृष्ण अर्जुन को यह समझाते हैं कि युद्ध में भाग लेना उसके लिए धर्म है, और उसे अपने कर्तव्यों से भागना नहीं चाहिए। यह सिखाता है कि हमें अपने कार्यों को निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, क्योंकि आत्मा का अस्तित्व हमेशा बना रहता है। इस ज्ञान से अर्जुन को साहस मिलता है, और वह अपने डर को पार कर अपने धर्म का पालन करने के लिए तैयार होता है। यह श्लोक हमें भी प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करें, क्योंकि हमारी असली पहचान आत्मा में है, जो कभी समाप्त नहीं होती।





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